Saturday 9 April 2011

क्यों ये मुल्क मुझे आज़ाद नहीं दिखता ...

आज कहता है मन कुछ लिख जाऊ ..

चंद लोगो के लिए ज़िन्दगी जी जाऊ

गीत मेरे शायद सब समझ न पाए

फिर भी उन् गीतों को गुनगुनाता जाऊ ..


दिल कहता है मै कुछ कर गुज़र जाऊ ..

पर डर है किसी और मसले में उलझ कर न रह जाऊ ..

दिल व्यस्त है खुद की ही उलझनों मै

फिर भी वो कहता है किसी की ज़िन्दगी सुलझा जाऊ ..


एक सवाल फिर भी ज़हन मै मेरे आता जाएगा ..

क्या वक़्त योंही बीत जाएगा ..?

या मेरा भी कल किसी के काम आयेगा ..

क्यों कल कोई फिर मेरे गीत गुनगुनाएगा . .?


ऐ दोस्त ज़िन्दगी तो सभी जिते है ..

ये बताओ कितनो के दिल तुमने जीते है

सभी यही कहते है मै इस देश के लिए जियूंगा

पर क्यों मुट्ठी भर लोग इस मुल्क के लिए जान कुरबा करते है ..


क्या कमी रह गई थी इस देश को आज़ाद करने मै

क्या ज़िन्दगी यूही बीत जाएगी चंद रूपया कमाने मै

कोई आज सर पर कफ़न बंधने को तैयार नही दिखता

घर सब के बस जाएगे ये मालूम है हमे ,

पर दूर कही देखने पर ये मुल्क मुझे आज़ाद नहीं दिखता ...

ये मुल्क मुझे आज़ाद नहीं दिखता ...

जय हिंद ...

जय भारत ..

Sunday 24 October 2010

वो पांच मिनट ...

शाम के सात बजे थे सडको पर लोग तेज़ी से अपने अपने घरो की ओर जा रहे थे।मै भी अपनी बाइक से घर कीतरफ जा रहा था। सब्ज़ी मंडी से गुज़र रहा था चौराहे की दुकान पर कई लोग चाट पकोड़ी के चटखारे ले रहे थे। वहीपास मे सड़क के किनारे दो छोटे बच्चे खड़े थे , होंगे कुछ चार साल और एक उस से छोटा , काले कपडे भूरी आँखे , मासूम से , हाथ मे थेली वो भी घर जाना चाहते थे। घर दूर था तो सड़क किनारे मदद मांग रहे थे आन जाने वालोसे, पर कोई उन पर ध्यान नहीं दे रहा था। मे भी अपनी मस्ती मे था। पर जाते जाते उन दोनों छोटे बच्चो पर नज़रपड़ गई, उसकी आँखे कुछ मांग रही थी , मे रुक गया।
वो बच्चा बोला : क्या आप हम दोनों को पुलिस लाइन तक छोड़ दोगे।
मैंने कहा हां वो दोनों बच्चे जल्दी से गाड़ी की तरफ बढे, पहले छोटा लड़का मुझे पकड़ कर बैठ गया उसके पीछेउसका बड़ा भाई, वो चार साल का था पर अपने भाई की पूरी देखभाल कर रहा था।
अब हम तीनो उस बाइक पर अपने घर की ओर बढ रहे थे। वो पांच मिनट वाकई बोहोत कुछ सिखा गए मुझे। वोछोटा बच्चा ,एक दम जोर से मुझे पकड़ कर बैठ गया। उसकी पकड़ से मुझे उसके डर का पूरा एहसास हो गया।
मैंने
थोड़ी बात करने की कोशिश की उन् दोनों से
मैंने उन् बच्च से पुछा "स्कूल जाते हो ?"
वो बोला : "हां , सुबह स्कूल जाते है।"
मैंने दूसरा सवाल किया : "अभी रात को कहा से रहे हो ?"
वो बोला : "हम तिलक नगर गए थे।"
मैंने पुछा: "किस लिए ?"
उसका जवाब सुन कर मे चुप हो गया
वो बच्चा बोला : "हम रोटिय मांगने गए थे। दिन मे हम स्कूल जाते है और रात को रोटिय मांगते
है ।"

उन बच्चो को देख कर बोहोत बुरा लगा।
हम पुलिस लाइन पहुच गए वो गाड़ी के रुकते ही उतर गए
उनकी मासूम आंखे चमक रही थी। शायद आज वो ज्यादा रोटिया लाए थे
वो मुस्कुरा कर बोला :" thank you भैया"
और मै अपनी बइक पर घर की तरफ चल दिया ।उन पांच मिनटों में कई चीज़े ऊन दो बच्चो से सीख गया।
जाते जाते कई सवाल मेरे ज़हन में उठने लगे अपने आप पर भी तरस गया।
एक और वो बच्चे दिखे उन बच्चो की क्या उम्र थी ? जिनके पास आज़ादी होना चाहिए , आराम होना चाहिये , जिन्हें सुकून मिलना चाहिए वो इतनी छोटी उम्र मै सडको पर हाथ फैला रहे थे। फिर भी एक हौसला था उनमे।एकउम्मीद के सहारे जी रहे थे
और दूसरी और वो लोग दिखे जो सब कुछ होने के बाद भी जाने किस भाग दौड़ मै लगे है?जो पा लिया वो सहीनहीं लगता उसकी कोई कदर नहीं बोहोत कुछ पाने की इच्छा रखते है , ख़ुशी पास होते हुए भी ,रोते रहते है।लगता है लोग जीना ही भूल गए है

they call me mad....

वो शाम का वक़्त सूरज बस अपनी ड्यूटी पूरी कर लौटने ही वाला था । में सड़क के किनारे खड़ा था । तभी मेरी नज़र एक शख्स पर गई । कई दिनों से में रोज़ से उस शख्स को देख रह था। वो हेमेशा किसी सोच में डूबा हुआ ही दिखता, वो कही भी बैठ जाता, और सोचने लगता । बस एक गंभीर मुद्रा ज़मीन की और टक- टकी । फिर खड़े हो कर फिर चल पड़ना, दोनों हाथो को पीछे कर। अपनी ही धुन न जाने क्या चल रह था दिमाग में। देखने पर हट्टा कट्टा इन्सान,अच्छे घर से ताल्लुक है । वो पास ही बने एक चोकीदार के ईट से बने घर के सामने पोहोचा और चोकीदार के चार साल के लड़के के साथ रस्ते पर चल रही चीटियो को देखने लगा। बोहोत देर तक वो दोनों देखते रहे । वो छोटा बच्चा थोड़ी देर असहज महसूस कर रह था, पर फिर कुछ देर बाद वो घुल मिल गए। एक ३५ वर्ष का आदमी और ४ साल का बच्चा सड़क पर खड़े हो कर चीटिया देख कर खुश हो रहे है कुछ अजीब लगा । फिर वो शख्स कुछ और सोच कर चलने लगा। अब बच्चा थोडा दुखी हुआ के उसका साथी जा रहा है । वो दौड़ कर उसके पास पोहचा और साथ चलने लगा, अपना दाहिना हाथ उस शख्स के हाथ में दिया ..और दोनों हाथ पकड़ कर चलने लगे । वो बच्चा उसकी तरफ देख कर हस हस कर बातें करता रहा था ,और वो आँखों से ओझल हो गए ।

हर सख्स अगर उस पागल के साथ उस बच्चे की तरह व्यवहार करता तो शायद वो आज पागल नहीं होता । उस बच्चे में वो समझदारी नहीं थी उसका पर वो कई समझदार लोगो और पढ़े लिखे लोगो से आगे निकल गया ।

Thursday 18 February 2010

हम "इंडियंस"

एक और नयी तस्वीर जो हम हिन्दुस्तानियो की देश भक्ति दिखा रही। ये तस्वीर कुछ फिर सोचने पर मजबूर कर रही है के हम कितना चाहते है अपने देश को, और कितना गर्व है हमें अपने भारतीय होने का? वैसे सभी को हक़ है अपने तरीके से जीने का, भले ही वो कोई हिन्दुस्तानी हो या अमरीकन।
क्यों देश भक्ति या कहे "patriotism" सुन कर सबसे पहले हमारे दिमाग में १५ अगस्त और २६ जनवरी घुमने लगताहै? या हमारी patriotic फीलिंग्स किसी आतंकवादी हमले के बाद आसमान छूने लगती है? या किसी टीवी चेनल के साप्ताहिक प्रोग्राम में जिसमे देश के कई मुद्दों पर चर्चा होती है, और हम सरकार या पकिस्तान को गालिया दे कर जताते है। तब सभी लोग देश पर चर्चा ऐसे करते है जैसे के कल ही पूरा मुल्क इस चर्चा के बाद आने वाले नतीजो से बदल जाएगा।
हमारी
गली के वर्मा जी भी उस टीवी शो में गए कई ढेरो बातें उन्होंने कही लगा इनसे बड़ा कोई देशभक्त हो ही नहीं सकता। लेकिन वापस आते वक़्त वो एक चोराहे पर एक पुलिस वाले द्वारा धर लिए गए अब क्या था, गाँधी जी की तस्वीर आज भी काम रही है ,जेब में ही थी, हवालदार को २० रुपये की पत्ती थमाई और अपना सारा देश प्रेम वही धो दिया।हमारे नेता देश भक्ति मे सबसे उपर आते है क्यों की वही कुछ लोग है जो सारे समय देश की सोचते है पर उनकी भी देश भक्ति चरम पर तब होती
है, जब चुनाव आने वाले हो। भाषण बाजी करना तो वो उपर से ही लिखवा कर लाए है मोहल्ले में जब चुनाव प्रचार के लिए गाड़ी आती है। जिसपर बड़े बड़े लाउडस्पीकर बंधे होते है और उसमे देश भक्ति के गाने बजते है, चारो और ऐसा माहोल हो जाता है जैसे कल ही भारत आजाद हुआ हो।
अब बात रही हिंदी भाषा की तो इससे शर्म की बात क्या होगी के देश में अब हिंदी दिवस मनाया जाने लगा है जिस दिन लोग हिंदी में बात करते है, और हिंदी को प्रोत्साहित किया जाता है। वाकई में ये शर्म नाक बात है के हिन्दुस्तान के लोगो को अपनी मातृभाषा को जिन्दा रखने के लिए अब हिंदी दिवस मानना पड रहा है। कभी तो सोचना पड़ता है के धन्यवाद कहू के थैंक्स ? क्योंकी अंग्रेज़ी इस्टेट्स सिम्बोल है और हिंदी, स्कूली किताबो का हिस्सा भर बन कर रह गई है, या आम बोल चाल की भाषा
देश का तिरंगा १५ अगस्त और २६ जनवरी को ही याद आता है, जो तीन रंगों से डिजाईन किया एक कपडे काटुकड़ा हो गया हैअब तो ये प्लास्टिक पर भी छपते हैऔर हर राष्ट्रीय दिवस पर ये प्लास्टिक के तिरंगे कसी गरीब की रोज़ी रोटी और कमाई का जरिया बन जाते है। आप देखिएगा किसी चौराहे पर आपको कोई बच्चा तिरंगे बैचते मिल जाएगा। १० साल का धीरज १५ अगस्त के दिन तिरंगा एक स्कुल के बहार बेचता हैस्कुल के बच्चे उससे तिरंगा खरीदते है, १५ अगस्त के समारोह के दौरान ये बच्चो के मनोरंजन का हिस्सा हो जाते है१५ अगस्तके समरोह के बाद बच्चो को इनमे कोई दिलचस्पी नहीं होती और फिर तिरंगे यहाँ वहा सडको पर या गटर में बह जाते हैखेर ये तो बच्चे है , बेचने वाला भी और खरीद ने वाला भीएक के लिए वो कमाई का जरिया और एक के लिए मनोरंजनवयस्कों के लिए भी शायद अब ये कोई गंभीर विषय नहीं हैबस डर इस बात का है, के कही हम अपने इतिहास को ही भुला देराष्ट्र गीत और राष्ट्र गान अब सिर्फ फोर्मलिटी बन कर रह गए हैये सरकारी विभागों में राष्ट्रीय दिवस पर या स्कुलो में गाए जाते हैकई लोग तो बस इतना याद रखते है के हां हम स्कूल के दिनों में गाया करते थे।कई लोग तो ये याद रखने की भी जरूरत नहीं समझते। पर एक बात है, के जब भी कही ये राष्ट्र गीत बजता है हर भारतीय के रोंगटे खड़े हो जाते है और वो पूरी तरह से भावुक हो ही जाता है

हम भारतीय है , हम सब एक है , अपने देश से प्यार भी करते है , और हर कोई ज़रूरत आने पर मर मिट सकता है देश के लिएपर क्या इस देश का हर नागरिक जो भी काम करता होचाहे वो रोज़ी रोटी कमाना हो या समाज सेवा करनाअगर हम हर काम को देश की उन्नति से जोड़ कर देखे तो ये भी देश प्रेम ही होगादेश प्रेम सिर्फ देश के लिए बातें करने , पकिस्तान को गालिया देने , १५ अगस्त पर मजबूरी में दफ्तर जाने , और राष्ट्र गान के समय खड़े हो जाने से ही नहीं होताये तो वही फीलिंग है जो हर इंसान अपने घर को बनने के लिए रखता है। कई लोग अपने स्तर पर देश के लिए काम कर रहे है और देश का नाम रोशन कर रहे है । आप भी कीजिये और देश को उन्नति की ओर ले जाइये । पर अपने राष्ट्रीय भाषा , झंडे और गीत का सम्मान करिए ।क्योकि कई लोग आज भी सरहदों पर अपनी जान इस देश के लिए दे रहे है।

Wednesday 17 February 2010

मल्टीपरपस कुत्ते

एक नयी तस्वीर फिर से लाया हूँ पर थोड़ी अलग है, दिखने में नहीं गौर करने पर।
सुबह का अखबार उठाया। खबरों पर नज़रे दौड़ रही थी। के साइड के कॉलम में एक अनोखी और विचित्र खबर पढ़कर थोडा हैरान हुआ, और सोचने लगा खबर थी ब्रिजेश्वरी में रहने वाले विवेक माथुर ने किशन गंज में रहने वाले अपने दोस्त कबीर को अपने कुत्ते से कटवाया। कारण कोई आपसी तू तू -मै मै। अब कुत्ते भी हथियार हो गए है।वाकई में उस इंसान की दाद देनी होगी, जिसने नया तरीका इजाद किया बदला लेने के लिए। हो सकता है, ये खबर पढ़ कर ही कई लोगो ने अपने घरो मै कुत्ते पाल लिए होंगे। अब कुत्ते मल्टीपरपस हो गए है। घर की सुरक्षा के साथ अब वो हथियार भी हो जाएँगे। चुन्नू शाम को दोस्तों से लड़ कर आएगा और फिर पिता से कह कर, कुत्तो से दोस्तों को कटवाएगा। हो सकता है अब पड़ोस की मिसेज शर्मा, पड़ोस की मिसेज वर्मा को कुत्तो से कटवाने की धोस दे।कुछ दिनों में बाजार में कई टाइप के कुत्ते बिकने लगे। अब लूक्स के साथ कुत्ते की इस्पेसिफिकेशन में उसके जबड़े का पॉवर भी बताया जाने लगे। चोबे जी बोलेंगे "मेरे मुह मत लगो, नहीं तो मेरा कुत्ता टाइगर , 200 पाउंड के फोर्स से तुम्हे कहा कहा मुंह लगाएगा, मै भी नहीं बता सकता" फिर ये आधुनिक धमकिय हो जाएंगी। कुत्तो के भी नकली दांत बाज़ार मै मिलने लगेंगे। जब किसी के खिलाफ इस्तेमाल करना हो, पुराने खाने के दांतों पर एडवांस काटने वाले दांत लगाए और छोड़ दे अपने दुश्मन पर। फिर कहावत कुछ बदल जाएगी ,हाथी की जगह कुत्ता ले ले।बड़े दिखने वाले कुत्ते तो आज भी लोगो को खुखर ही दिखाते है , भले ही कुत्ता डरपोक क्यों हो। लेकिन अब छोटे कुत्ते भी किसी से कम नहीं होंगे। मिडिल क्लास और कम बजट वाले इन छोटे साइज के कुत्तो को हथियार बना लेंगे। हो सकता है करमसिंह के यहाँ दो कमरे के मकान के एक कोने मै ऐसा एक पोर्टेबल कुत्ता (हथियार ) आप को मिल जाए, और तीन महीने का किराया देने के बाद, माकन मालिक को उस्सी से कटवा दे।
कुत्ते का एक फ़ायदा और है, उसे घर पर रखने के लिए कोई लाइसेंस की जरूरत भी नहीं पड़ती। और कसी ने कुत्ते से कटवाने पर कोर्ट केस भी कर दिया, तो कुत्ते का नार्को टेस्ट भी उससे सच नहीं उगलवा सकता। कुत्ता केस के दौरान भोके भी अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए, के मै निर्दोष हूँ मुझे तो मेरे मालिक ने सुपारी दी थी काटने केलिए।पर वहा कोर्ट मै बैठे बड़े से बड़े विद्वान और बुद्धि जीवी भी उसे नहीं समझ पाएँगे। आखिर मै ये तो एक जानवर है असलियत मै तो बड़े बड़े खुखर "मनुष्य" जो "जानवर" से भी बदतर है ,जो सबूत होने के बाद भी अपने आप को बेगुनाह साबित कर बाहर घूम रहे है। ये तो फिर भी कुत्ता है छुट ही जाएगा।

Tuesday 16 February 2010

कंडीशन अप्लाए

उसने चलना शुरू किया,
हर कदम पर कुछ नया सिखा।
जो सिखा उससे उसका आत्मविश्वास,
कई गुना बढता जाता।

वो खुश था ,
अनजान इस दुनिया से
क्योकि किताबी दुनिया का साथ
अभी नहीं छुटा था।

किताबो से बोहोत व्यवहारिक
और विज्ञानिक ज्ञान लिया उसने।
अब हर डगर उससे आसन लगती
और होती भी है।

पर अब वो इस दुनिया में
उतरता है अपने ज्ञान के सहारे।
जो अब तक सिखा उसे उपयोग करने
कुछ बनाने और कुछ बदलने


पर अफ़सोस वो कुछ और पता है,
दुनिया किताबो से बिलकुल उलटी है।


पर वो फिर मुस्कुरा देता है ,
ये सोच कर के शायद उसने जो किताबे पढ़ी,
लेखक शायद उनपर "
कंडीशन अप्लाये"
लिखना भूल गया।

अब वो बैठ कर विश्लेषण करता है,
क्या किताबो में जो लिखा वो सब फ़िज़ूल था?
या उसे अब फिर से एक नयी पाठ शाला में भेज दिया है,
जहा उसे वो सब फिर से सीखना होगा जो ज़िन्दगी को,
जीने के लिए जरूरी है, जिसमे नैतिकता और इन्सानिअत,
कही दब कर रह गई है