शाम के सात बजे थे । सडको पर लोग तेज़ी से अपने अपने घरो की ओर जा रहे थे।मै भी अपनी बाइक से घर कीतरफ जा रहा था। सब्ज़ी मंडी से गुज़र रहा था चौराहे की दुकान पर कई लोग चाट पकोड़ी के चटखारे ले रहे थे। वहीपास मे सड़क के किनारे दो छोटे बच्चे खड़े थे , होंगे कुछ चार साल और एक उस से छोटा , काले कपडे भूरी आँखे , मासूम से , हाथ मे थेली । वो भी घर जाना चाहते थे। घर दूर था तो सड़क किनारे मदद मांग रहे थे आन जाने वालोसे, पर कोई उन पर ध्यान नहीं दे रहा था। मे भी अपनी मस्ती मे था। पर जाते जाते उन दोनों छोटे बच्चो पर नज़रपड़ गई, उसकी आँखे कुछ मांग रही थी , मे रुक गया।
वो बच्चा बोला : क्या आप हम दोनों को पुलिस लाइन तक छोड़ दोगे।
मैंने कहा हां । वो दोनों बच्चे जल्दी से गाड़ी की तरफ बढे, पहले छोटा लड़का मुझे पकड़ कर बैठ गया उसके पीछेउसका बड़ा भाई, वो चार साल का था पर अपने भाई की पूरी देखभाल कर रहा था।
अब हम तीनो उस बाइक पर अपने घर की ओर बढ रहे थे। वो पांच मिनट वाकई बोहोत कुछ सिखा गए मुझे। वोछोटा बच्चा ,एक दम जोर से मुझे पकड़ कर बैठ गया। उसकी पकड़ से मुझे उसके डर का पूरा एहसास हो गया।
मैंने थोड़ी बात करने की कोशिश की उन् दोनों से ।
मैंने उन् बच्च से पुछा "स्कूल जाते हो ?"
वो बोला : "हां , सुबह स्कूल जाते है।"
मैंने दूसरा सवाल किया : "अभी रात को कहा से आ रहे हो ?"
वो बोला : "हम तिलक नगर गए थे।"
मैंने पुछा: "किस लिए ?"
उसका जवाब सुन कर मे चुप हो गया ।
वो बच्चा बोला : "हम रोटिय मांगने गए थे। दिन मे हम स्कूल जाते है और रात को रोटिय मांगते है ।"
उन बच्चो को देख कर बोहोत बुरा लगा।
हम पुलिस लाइन पहुच गए । वो गाड़ी के रुकते ही उतर गए ।
उनकी मासूम आंखे चमक रही थी। शायद आज वो ज्यादा रोटिया लाए थे ।
वो मुस्कुरा कर बोला :" thank you भैया" ।
और मै अपनी बइक पर घर की तरफ चल दिया ।उन पांच मिनटों में कई चीज़े ऊन दो बच्चो से सीख गया।
जाते जाते कई सवाल मेरे ज़हन में उठने लगे । अपने आप पर भी तरस आ गया।
एक और वो बच्चे दिखे । उन बच्चो की क्या उम्र थी ? जिनके पास आज़ादी होना चाहिए , आराम होना चाहिये , जिन्हें सुकून मिलना चाहिए वो इतनी छोटी उम्र मै सडको पर हाथ फैला रहे थे। फिर भी एक हौसला था उनमे।एकउम्मीद के सहारे जी रहे थे ।
और दूसरी और वो लोग दिखे जो सब कुछ होने के बाद भी न जाने किस भाग दौड़ मै लगे है?जो पा लिया वो सहीनहीं लगता उसकी कोई कदर नहीं । बोहोत कुछ पाने की इच्छा रखते है , ख़ुशी पास होते हुए भी ,रोते रहते है।लगता है लोग जीना ही भूल गए है ।
Sunday 24 October 2010
they call me mad....
वो शाम का वक़्त सूरज बस अपनी ड्यूटी पूरी कर लौटने ही वाला था । में सड़क के किनारे खड़ा था । तभी मेरी नज़र एक शख्स पर गई । कई दिनों से में रोज़ से उस शख्स को देख रह था। वो हेमेशा किसी सोच में डूबा हुआ ही दिखता, वो कही भी बैठ जाता, और सोचने लगता । बस एक गंभीर मुद्रा ज़मीन की और टक- टकी । फिर खड़े हो कर फिर चल पड़ना, दोनों हाथो को पीछे कर। अपनी ही धुन न जाने क्या चल रह था दिमाग में। देखने पर हट्टा कट्टा इन्सान,अच्छे घर से ताल्लुक है । वो पास ही बने एक चोकीदार के ईट से बने घर के सामने पोहोचा और चोकीदार के चार साल के लड़के के साथ रस्ते पर चल रही चीटियो को देखने लगा। बोहोत देर तक वो दोनों देखते रहे । वो छोटा बच्चा थोड़ी देर असहज महसूस कर रह था, पर फिर कुछ देर बाद वो घुल मिल गए। एक ३५ वर्ष का आदमी और ४ साल का बच्चा सड़क पर खड़े हो कर चीटिया देख कर खुश हो रहे है कुछ अजीब लगा । फिर वो शख्स कुछ और सोच कर चलने लगा। अब बच्चा थोडा दुखी हुआ के उसका साथी जा रहा है । वो दौड़ कर उसके पास पोहचा और साथ चलने लगा, अपना दाहिना हाथ उस शख्स के हाथ में दिया ..और दोनों हाथ पकड़ कर चलने लगे । वो बच्चा उसकी तरफ देख कर हस हस कर बातें करता रहा था ,और वो आँखों से ओझल हो गए ।
हर सख्स अगर उस पागल के साथ उस बच्चे की तरह व्यवहार करता तो शायद वो आज पागल नहीं होता । उस बच्चे में वो समझदारी नहीं थी उसका पर वो कई समझदार लोगो और पढ़े लिखे लोगो से आगे निकल गया ।
हर सख्स अगर उस पागल के साथ उस बच्चे की तरह व्यवहार करता तो शायद वो आज पागल नहीं होता । उस बच्चे में वो समझदारी नहीं थी उसका पर वो कई समझदार लोगो और पढ़े लिखे लोगो से आगे निकल गया ।
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