Sunday 24 October 2010

वो पांच मिनट ...

शाम के सात बजे थे सडको पर लोग तेज़ी से अपने अपने घरो की ओर जा रहे थे।मै भी अपनी बाइक से घर कीतरफ जा रहा था। सब्ज़ी मंडी से गुज़र रहा था चौराहे की दुकान पर कई लोग चाट पकोड़ी के चटखारे ले रहे थे। वहीपास मे सड़क के किनारे दो छोटे बच्चे खड़े थे , होंगे कुछ चार साल और एक उस से छोटा , काले कपडे भूरी आँखे , मासूम से , हाथ मे थेली वो भी घर जाना चाहते थे। घर दूर था तो सड़क किनारे मदद मांग रहे थे आन जाने वालोसे, पर कोई उन पर ध्यान नहीं दे रहा था। मे भी अपनी मस्ती मे था। पर जाते जाते उन दोनों छोटे बच्चो पर नज़रपड़ गई, उसकी आँखे कुछ मांग रही थी , मे रुक गया।
वो बच्चा बोला : क्या आप हम दोनों को पुलिस लाइन तक छोड़ दोगे।
मैंने कहा हां वो दोनों बच्चे जल्दी से गाड़ी की तरफ बढे, पहले छोटा लड़का मुझे पकड़ कर बैठ गया उसके पीछेउसका बड़ा भाई, वो चार साल का था पर अपने भाई की पूरी देखभाल कर रहा था।
अब हम तीनो उस बाइक पर अपने घर की ओर बढ रहे थे। वो पांच मिनट वाकई बोहोत कुछ सिखा गए मुझे। वोछोटा बच्चा ,एक दम जोर से मुझे पकड़ कर बैठ गया। उसकी पकड़ से मुझे उसके डर का पूरा एहसास हो गया।
मैंने
थोड़ी बात करने की कोशिश की उन् दोनों से
मैंने उन् बच्च से पुछा "स्कूल जाते हो ?"
वो बोला : "हां , सुबह स्कूल जाते है।"
मैंने दूसरा सवाल किया : "अभी रात को कहा से रहे हो ?"
वो बोला : "हम तिलक नगर गए थे।"
मैंने पुछा: "किस लिए ?"
उसका जवाब सुन कर मे चुप हो गया
वो बच्चा बोला : "हम रोटिय मांगने गए थे। दिन मे हम स्कूल जाते है और रात को रोटिय मांगते
है ।"

उन बच्चो को देख कर बोहोत बुरा लगा।
हम पुलिस लाइन पहुच गए वो गाड़ी के रुकते ही उतर गए
उनकी मासूम आंखे चमक रही थी। शायद आज वो ज्यादा रोटिया लाए थे
वो मुस्कुरा कर बोला :" thank you भैया"
और मै अपनी बइक पर घर की तरफ चल दिया ।उन पांच मिनटों में कई चीज़े ऊन दो बच्चो से सीख गया।
जाते जाते कई सवाल मेरे ज़हन में उठने लगे अपने आप पर भी तरस गया।
एक और वो बच्चे दिखे उन बच्चो की क्या उम्र थी ? जिनके पास आज़ादी होना चाहिए , आराम होना चाहिये , जिन्हें सुकून मिलना चाहिए वो इतनी छोटी उम्र मै सडको पर हाथ फैला रहे थे। फिर भी एक हौसला था उनमे।एकउम्मीद के सहारे जी रहे थे
और दूसरी और वो लोग दिखे जो सब कुछ होने के बाद भी जाने किस भाग दौड़ मै लगे है?जो पा लिया वो सहीनहीं लगता उसकी कोई कदर नहीं बोहोत कुछ पाने की इच्छा रखते है , ख़ुशी पास होते हुए भी ,रोते रहते है।लगता है लोग जीना ही भूल गए है

7 comments:

  1. रौंगटे खड़े करने वाले पांच मिनट रहे होंगे |

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  2. सुन्दर...प्रेरणादायक पोस्ट|

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  3. सच में जो वाकया आपके साथ हुआ, रोंगटे खड़े कर देने वाला था.
    वैसे काफी अच्छी पोस्ट जारी रखिये.

    आपका स्वागत है
    http://jakhira.blogspot.com

    और हा!!! अपने ब्लॉग से word verification हटा दीजिए

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  4. bohot bohot shukriya aap sabhi ka.....

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  5. इस नए और सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  6. jo sukun milata hai is tarah kisi ki madad se use sirf gunge ka gud hi kaha jayega.....un bachchon ke sath poori sahanubhooti hai...kash unka bachpan bhi aam bachpan jaisa hota....

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  7. शानदार प्रयास बधाई और शुभकामनाएँ।

    एक विचार : चाहे कोई माने या न माने, लेकिन हमारे विचार हर अच्छे और बुरे, प्रिय और अप्रिय के प्राथमिक कारण हैं!

    -लेखक (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश') : समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान- (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जिसमें 05 अक्टूबर, 2010 तक, 4542 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता राजस्थान के सभी जिलों एवं दिल्ली सहित देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे), मो. नं. 098285-02666.
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